ग्रीवा शक्ति विकासक
आसन
१ गर्दन को दाएं से बाएं तथा बाएं से दाएं की ओर हल्के दबाओ के साथ घुमाएं।
२ गर्दन को धीरे धीरे आगे पीछे ले जाये।
३ अब गर्दन को सीने से लगाकर गले को कड़ा करते हुए बायीं ओर से आवृताकार घुमाते हुए पूर्व स्थिति में आ जाएं। पुनः इस क्रिया को दायीं ओर से आवृताकार घुमाएं। श्वास गति सामान्य रहेगी
लाभ
1 इस क्रिया के अभ्यास से गर्दन संबंधी सारे दोष
दूर होते है.
2 ग्रीवा की स्थूलता नष्ट हो जाती है.
3 इस क्रिया के अभ्यास से ग्रीवा सुन्दर, सुडौल तथा
आकर्षक हो जाती है।
4 गले के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं
5 कंठ का स्वर मधुर और सुरीला हो जाता है
6 तोतलापन और रुक-रुक कर बोलने वालो के लिए इस क्रिया
का अभ्यास अद्धभुत है
7 इस क्रिया के अभ्यास से लम्बाई बढ़ सकती है
8 संगीत का अभ्यास करने वालो के लिए यह क्रिया परम
उपयोगी हैं
9 स्पोंडिलिटिस
के रोगियों के लिए यह क्रिया विशेष महत्वपूर्ण है किन्तु स्पोंडिलिटिस के रोगी को इस
क्रिया में गर्दन को आगे की तरफ नहीं लाना चाहिए
10 इस क्रिया से गर्दन में पर्याप्त लचीलापन आ जाता
है
सावधानी
1 स्पोंडिलिटिस से पीड़ित व्यक्ति गर्दन
आगे न झुकाएं
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